आचार्य श्रीराम शर्मा >> रुग्ण समाज और उसका कायाकल्प रुग्ण समाज और उसका कायाकल्पश्रीराम शर्मा आचार्य
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रुग्ण समाज और उसका कायाकल्प....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
हिन्दू समाज आज पतनावस्था से ग्रस्त है। जिस जाति के पास वेद, उपनिषद, गीता से लेकर लोकोत्तर ज्ञान-भण्डार मौजूद है और जिसका मार्गदर्शन गत शताब्दी में भी राममोहन राय, दयानंद, विवेकानंद और वर्तमान शताब्दी में गाँधी और तिलक जैसे महामानवों ने किया है, वह जाति अभी तक कुरीतियों, अंधविश्वासों तथा भृष्टाचार के इतने गहरे पर्त में पड़ी रहे, यह वास्तव में एक बड़ी शोचनीय और आश्चर्य की बात है। जबकि हम देख रहे हैं कि जात-पात की प्रथा और वैवाहिक कुरीतियाँ हमारी जड़ को खोखली किये देती हैं ; पंडे-पुजारियों का धर्म के नाम पर झूठा ढोंग हमारी सर्वोच्च आध्यात्मिक संस्कृति को बदनाम कर रहा है ; भिक्षुक-समाज धर्म के नाम असंख्य धन-सम्पदा को बर्बाद करते हुए सर्वसाधारण में तरह-तरह के दोषों की वृद्धि कर रहा है और इतने पर भी हमारी आँखें नहीं खुलतीं, तो यह कहना पड़ेगा कि हमारा सामाजिक रोग बहुत गहरा पहुँचा है और यह कोरे उपदेशों से दूर नहीं हो सकेगा। इसीलिए प्रत्येक विवेकशील समाज हितैशी व्यक्ति का कर्तव्य है कि इस सम्बन्ध में सावधान और सन्नद्ध होकर इन दोषों के निराकरण के लिए तैयार हो। इस पुस्तक में पाठकों को उपर्युक्त दोषों के सम्बन्ध में ऐसी जानकारी के बातें मिलेंगी जिनसे इन्हें स्वयं परिस्थिति की गम्भीरता का अनुभव होगा और वे दूसरों को भी समझा सकने में समर्थ होंगे। इस प्रकार जब बहु संख्यक समाज हितैषी व्यक्ति इस कार्य का भार अपने कंधों पर उठायेंगे और क्रियात्मक रूप से इन दोषों को मिटाने का प्रयत्न करेंगे, तभी उनका निराकरण सम्भव होगा।
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